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नाग पञ्चमी 2024

नाग पंचमी

नाग पंचमी

उत्सवप्रियता भारतीय जीवन की प्रमुख विशेषता है ।
देश में समय समय पर अनेक पर्वों एवम् त्योहारों का भव्य आयोजन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को नागपञ्चमी का त्योहार नागों को समर्पित है ।
वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना गया है ।
नागों का मूल स्थान पाताल लोक प्रसिद्ध है ।
पुराणों में ही मायके की राजधानी के रूप में भोगवतीपुरी विख्यात है ।
संस्कृतकथा-साहित्य में
विशेष रूप से “कथासरित्सागर” नागलोक और वहाँ के निवासियों की कथा से ओर परोत है ।

“गरुड़पुराण”, भविष्यपुराण,चरणसंहिता,सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है ।
पुराणों में यक्ष किन्नर गन्धर्वों के वर्णन के साथ नागों का वर्णन भी मिलता है ।
पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमशः प्रत्येक उनके रथ के वाहक बनते है ।
नाग देवता भारतीय संस्कृति में देव सर्वरूप में स्वीकार किए गए है ।
कश्मीर के जाने माने संस्कृत कवि कल्हन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “राजतरंगिणी” में कश्मीर की संपूर्ण भूमिका को नागों का अवदान माना है ।
वहाँ के प्रसिद्ध नगर अनन्तनाग का नामकरण इसका ऐतिहासिक प्रमाण है ।
देश के पर्वतीय क्षेत्रों में नाग पूजनीय माने जाते है तथा इनके अनेक स्वरूपों का स्मरण किया जाता है
जिसमें अनन्त, वासुकि नाग मुख्य है , जिनसे नागविष और भय से रक्षा होती है
तथा सर्वत्र विजय होती है –

अनन्तं वासुकिं शेषंपद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा ||
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः||
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत |
(श्री नवनाग स्तोत्रम)

देवी भागवत में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया जाता है । श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी नागों को अत्यंत आनंद देने वाली है
“नागानामानन्दकरी” पञ्चमी तिथि को नागपूजा में उनको गो-दुग्ध से स्नान कराने का विधान है। कहा जाता है कि एक बार मातृ श्राप से नाग लोक जलने लगा ,इस दाहपीड़ा की निवृत्ति के लिए( नागपञ्चमीको ) गोदुग्ध स्नान जहां नागों को शीतलता प्रदान करता है , वहाँ भक्ति को सर्प भय से मुक्ति भी देता है ।

इस कथा के प्रवक्ता सुमन्त मुनि थे तथा श्रोता पांडव वंश के राजा शतानीक थे –
एक बार देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों में उच्चै:श्रवा नामक अश्वरत्न प्राप्त किया था ।
यह अश्व अत्यंत श्वेतवर्णका था, उसे देखकर नाग माता कद्रूतथा विमाता विनता दोनों में अश्व के रंग के संबंध में बाद विवाद हुआ, कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्यामवर्ण के है , यदि मैं अपने कथन में असत्य सिद्ध हो गई तो मैं तुम्हारी दासी बन जाऊँगी अन्यथा तुम मेरी दासी बनोगे ।
कद्रूने नागों को बाल के समान छोटा बनकर अश्वके शरीरमें आवेष्टित होने का निर्देश किया , किंतु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की । इस पर क़द्रू ने क्रोधित होकर नागों को श्राप दिया , की पांडव वंश के राजा ‘जनमेजय’ यज्ञ करेंगे , उस यज्ञ में तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे ।
नागमाता के शाप से भयभीत नागों ने वासुकी के नेतृत्व में ब्रह्मा जी से शापनिवृत्तिका उपाय पूछा तो ब्रह्म जी ने निर्देश दिया – यायावरवंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे, उनका पुत्र आस्तिक तुम्हारी रक्षा करेगा ।
ब्रह्मा जी ने पञ्चमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया था इसी तिथि पर आस्तिकमुनि ने नागों का परीरक्षण किया था ।
अतः नाग पंचमी का यह व्रत ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।
नागों को प्रणाम करने का मंत्र निम्नलिखित है

-सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।’
(भवि० पुराण, ब्राह्म पर्व )

“” भाव यह है कि जो नाग पृथ्वी,आकाश,स्वर्ग,सूर्य की किरणों,सरोवरों, वापी, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते है , वे हम सब पर प्रसन्न हो, हम उनको बार बार नमस्कार करते है

नागों की अनेक जाती तथा प्रजातियाँ पायी जाती है ।

भविष्यपुराण में नागों के लक्षण,नाम, स्वरूप, एवम् जातियों का विस्तार से वर्णन मिलता है ।
मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख है ।
भारत धर्मप्राण देश है।

भारतीय चिंतन प्राणी मात्र में आत्मा और परमात्मा के दर्शन करता है एवम् एकताका अनुभव करता है –

“”समम् सर्वेषु भुतेषु तिष्ठान्तम परमेश्वरम ||””
यह दृष्टि ही जीव मात्र- मनुष्य, पशु ,पक्षी,कीट, पतंग, – सभी में ईश्वर के दर्शन कराती है ।

जीव के प्रति आत्मीयता का भाव तथ्य दया का भाव विकसित करती है ।
अतः नाग हमारे लिए पूज्य और सरंक्षणीय है ।
प्राणीशास्त्र के अनुसार नागों की असंख्य पप्रजातियाँ है , जिसमें विष भरे नागों की संख्या बहुत कम है ।
ये नाग हमारी कृषि-संपदा की कृषिनाशक जीवों से रक्षा करते है ।
पर्यावरण रक्षा तथा वन संपदा में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है ।
नागपंचमी पर्व नागों तथा जीवों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है ।

यह पर्व प्राचीन समय के अनुरूप आज भी प्रासंगिक है ।
आवश्यकता है तो हमारी अन्तर्दृष्टि की ।

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